This Blog is merged with

THALE BAITHE

Please click here to be there



फ़ॉलोअर

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

पाँचवी समस्या पूर्ति - हरिगीतिका छन्द - घोषणा

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 
और 
नवरात्रि की शुभ कामनाएँ



माँ दुर्गा के पावन पर्व के शुभारम्भ के साथ ही हम भी बढ़ते हैं पाँचवी समस्या पूर्ति की ओर, घोषणा पोस्ट के साथ।

छन्द
इस बार की समस्या पूर्ति का छन्द है हरिगीतिका
इस छन्द के बारे में पिछली दो पोस्ट्स में विस्तार से बातें हो चुकी हैं 
शब्द 

इस बार 'पंक्ति' की बजाय 'शब्द' ले रहे हैं हम। 
विषय, रस और अलंकार का चुनाव रचनाधर्मी अपनी-अपनी रुचि के अनुसार करने के लिए स्वतंत्र हैं। इस का एक फायदा ये भी होगा कि हमें भाँति-भाँति के अद्भुत छन्द पढ़ने को मिलेंगे। 
आप जो रस-अलंकार ले रहे हैं या कोई विशेष प्रयोग कर रहे हैं, उस पर एक संक्षिप्त टिप्पणी अवश्य लिख कर भेजें। 
विशेष पंक्ति इस बार नहीं है, परंतु विशेष प्रयोगों का स्वागत है। 
अन्य भाषा - बोलियों में भी छन्द आमंत्रित किए जा रहे हैं और वो छन्द संबन्धित रचनाधर्मी की प्रतिनिधि पोस्ट के साथ ही प्रकाशित किए जाएँगे। मतलब इस बार समापन पोस्ट नहीं होगी।
छंदों की संख्या उतनी रखें जिसे पढ़ने के लिए पाठक के मन में रुचि बरकरार रहे।

पुराने सहयोगियों को तो पता है परन्तु नए सहभागियों के लिए बताना आवश्यक लग रहा है कि अपने छंद navincchaturvedi@gmail.com पर भेजें नए साथी बिलकुल भी संकोच न करें यदि उन के छंदों में परिमार्जन आवश्यक लगा, तो प्रकाशन के पहले उन से संवाद भी स्थापित किया जाता है मंच के द्वारा

पहला शब्द - त्यौहार 
आप के छन्द में त्यौहार की जगह यदि पर्व या उत्सव बैठ रहा हो तो आप उसे भी ले सकते हैं 
उदाहरण :-
त्यौहार का माहौल आया, हर शहर हर गाँव में 
अद्भुत-अनोपम-श्रेष्ठ उत्सव, हिन्द की पहिचान हैं 
हर पर्व का आधार प्यारे, विश्व का कल्याण है

दूसरा शब्द - कसौटी
इस कसौटी शब्द के पर्यायवाची / समानार्थी शब्द भी ले सकते हैं रचनाधर्मी। उसे हाइलाइट कर दें।
उदाहरण :-
कुछ तो कसौटी ज़िंदगी के, साथ होनी चाहिए
हर हाल में हाज़िर रहे जो, हर परीक्षा के लिए

तीसरा शब्द - अनुरोध 
इस अनुरोध शब्द के पर्यायवाची / समानार्थी शब्द भी ले सकते हैं रचनाधर्मी। उसे हाइलाइट कर दें।
उदाहरण :-
है इल्तिज़ा इतनी - हमारी - कोशिशों को वेग दो 
परिवार में मिल कर रहें सब,  बस यही अनुरोध है 
[यहाँ पहली पंक्ति में 'हमारी' शब्द 'इतनी' और 'कोशिशों' दोनों शब्दों से जुडा हुआ है]

सभी रचनाधर्मियों से आह्वान किया जाता है कि भारतीय जन-मन में रचे-बसे इस अद्भुत शिल्प वाले मनोहारी छन्द 'हरिगीतिका' को अपने कल्पना संसार में अवश्य शामिल करते हुए भारतीय छन्द साहित्य की सेवा में अपना योगदान जारी रखें। आप लोगों के छन्दों की प्रतीक्षा रहेगी

एक निवेदन पाठकों से भी - इस मंच के माध्यम से भारतीय छंद साहित्य की सेवा में जुटे रचनाधर्मियों को आप की टिप्पणियों का इंतज़ार रहता है| सो प्लीज डू द नीडफुल ........))))))))))))))))))))  




जय माँ शारदे!

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

हरिगीतिका छन्द की ऑडियो क्लिप्स

सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन



आइये सुनते हैं हरिगीतिका छन्द, हमारे सब के चहेते भाई श्री राजेन्द्र स्वर्णकार  जी के मधुर स्वर में 

[१] गणपति वन्दना 






वन्‍दहुँ विनायक, विधि-विधायक
, ऋद्धि-सिद्धि प्रदायकं।
गजकर्ण, लम्बोदर, गजानन, वक्रतुंड, सुनायकं।।

श्री एकदंत, विकट, उमासुत, भालचन्द्र भजामिहं।
विघ्नेश, सुख-लाभेश, गणपति, श्री गणेश नमामिहं ।। 

[शब्द - नवीन सी. चतुर्वेदी - स्वर - राजेन्द्र स्वर्णकार]





[२] सरस्वती वन्दना





ज्योतिर्मयी! वागीश्वरी! हे - शारदे! धी-दायिनी !
पद्मासनी, शुचि, वेद-वीणा -  धारिणी! मृदुहासिनी !!

स्वर-शब्द ज्ञान प्रदायिनी! माँ  -  भगवती! सुखदायिनी !
शत शत नमन वंदन वरदसुत, मान वर्धिनि! मानिनी !!


[शब्द और स्वर - राजेन्द्र स्वर्णकार]



मैं राजेन्द्र भाई को हमेशा कहता हूँ कि आप वाकई माँ शारदा की असीम अनुकम्पा से अभिभूत सरस्वती पुत्र हैं एक बार उन्होंने फिर से मुझे सही साबित किया है 


ऊपर के उदाहरण पढ़/सुन कर नए लोग कहीं ये न समझने लगें कि यह छंद तो ईश-वन्दना जैसे उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होता है, इसलिए आइये अब एक अन्य उदाहरण पढ़ते हैं। इस की ऑडियो क्लिप नहीं है, यह साधारण पठंत [कविता पाठ] के अनुसार है। यदि आप लोगों ने कहा तो इस की ऑडियो क्लिप घोषणा पोस्ट के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे



[३] संसार उस के साथ है जिस को समय की फ़िक्र है

सदियों पुरानी सभ्यता को, बीस बार टटोलिए
किसको मिली बैठे-बिठाये, क़ामयाबी, बोलिए

है वक़्त का यह ही तक़ाज़ा, ध्यान से सुन लीजिए
मंज़िल खड़ी है सामने ही, हौसला तो कीजिए।१



चींटी कभी आराम करती, आपने देखी कहीं
कोशिश-ज़दा रहती हमेशा, हारती मकड़ी नहीं

सामान्य दिन का मामला हो, या कि फिर हो आपदा
जलचर, गगनचर कर्म कर के, पेट भरते हैं सदा।२



गुरुग्रंथ, गीता, बाइबिल, क़ुरआन, रामायण पढ़ी
प्रारब्ध सबको मान्य है, पर - कर्म की महिमा बड़ी

ऋगवेद की अनुपम ऋचाओं में इसी का ज़िक्र है
संसार उस के साथ है, जिस को समय की फ़िक्र है।३

[शब्द - नवीन सी. चतुर्वेदी]


तो ये थे गायन और पठंत शैली में हरिगीतिका छन्द के उदाहरण जानकार लोग तो सब जानते ही हैं, परन्तु, नए लोगों के लिए उदाहरण देना ज़रूरी होता है सिर्फ क़िताबी बातों से सीखना वाक़ई मुश्किल होता है, इसीलिये घनाक्षरी छन्द वाले आयोजन से मंच ने ऑडियो क्लिप्स का विकल्प भी अपनाना शुरू कर दिया है आयोजन दर आयोजन नए लोग जुड़ते जा रहे हैं, यह बहुत ही हर्ष का विषय है काश पुराने लोग भी इस साहित्य सेवा का सहभागी बनने के बारे में पुनर्विचार करें

जल्द ही हम लोग फिर से मिलेंगे 'घोषणा पोस्ट' के साथ...........तब तक आनंद लीजिये इन छन्दों का और कमर कस लीजिये इस बार, पहले से बेहतर आयोजन को मूर्त रूप देने के लिए

हालाँकि जिन लोगों के ई-मेल एड्रेस मंच के पास उपलब्ध हैं, उन सभी को मेल नोटिफिकेशन के साथ साथ ऑडियो क्लिप्स भी अटेच कर के भेजे गए हैं। फिर भी यदि किसी व्यक्ति को यहाँ ब्लॉग पर से इन audios को डाउनलोड करने या सुनने में दिक्क़त आ रही हो, तो वे कमेन्ट बॉक्स में अपने ई मेल पते के साथ इस बारे में लिख दें या ई मेल भेज कर सूचित कर दें।   


जय माँ शारदे!

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

आओ बतियाएँ हरिगीतिका छंद पर


सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन 



उत्सवों का दौर जारी है और क्यूँ न हो - पर्वों का पावन प्रदेश जो है हमारा प्यारा हिन्दुस्तान| इस बात को ध्यान में रखते हुए ही आदरणीय 'सलिल' जी  के परामर्श अनुसार 'हरिगीतिका' छन्द को रिजर्व कर लिया गया था इन दिनों के लिए|

घनाक्षरी छन्द पर आधारित चौथी समस्या पूर्ति में आप लोगों ने सफलता के जो प्रतिमान स्थापित किये हैं, आप सभी को साष्टांग प्रणाम| पिछले आयोजन के विशेष आकर्षण रहे दो - एक तो 'विशेष पंक्ति वाले छन्द' और दूसरा 'समापन पोस्ट'| समापन पोस्ट में आप लोगों ने क़माल किया भाई क़माल| ख़ास कर भाई योगराज जी को विशेष रूप से साधुवाद देने की ज़रुरत है जिन्होंने मंच के निवेदन पर सराइकी सहित छह भाषाओं / बोलियों में प्रस्तुतियां दीं| हरियाणवी को सामान्य रूप से हास्य के लिए यूज किया जाता रहा है, पर आपने हरियाणवी में हरियाणे की प्रखर समस्या 'खाप के फैसले' को निरुपित कर एक अहम् काम को अंज़ाम दिया, जिसे आने वाले समय में लोग बार बार रेफर करते रहेंगे| भाई योगराज जी आप की इन प्रस्तुतियों के लिए सिम्पली बोले तो 'हेट्स ऑफ'|

तिलक राज कपूर जी का 'वक्ष कटि से कटा रे', महेंद्र जी का 'ठोडी पर गोरखा रूपी तिल', अजित गुप्ता जी का 'मैं तो चली काम पर', ब्रजेश  त्रिपाठी जी का 'ब्यूटी कम्पटीशन', अम्बरीश भाई की अलंकारिक जादूगरी, वीनस की 'सपा बसपा' और शेखर चतुर्वेदी का 'रात भर बदली की ओट से' ने भी काफी प्रभावित किया| श्रीमती अजित गुप्ता जी तो खैर पहले भी छन्द साहित्य से जुड़ी रही थीं, परंतु आदरणीया श्रीमती आशा सक्सेना जी के प्रयास की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम ही होगी। मंच ने जिस जिस से भी प्रार्थना की, सभी ने उस प्रार्थना को सम्मान प्रदान करते हुए, अपना सर्वोत्तम प्रस्तुत किया| मंच को विशवास है कि अब यह सभी गुणीजन स्वत: स्फूर्त हो कर इस साहित्य सेवा में अपना अहम् योगदान अवश्य प्रदान करेंगे|  

[हाँ ये भी है कि बहुतों ने उस समापन पोस्ट को या तो पढ़ा ही नहीं, और पढ़ा भी तो टिपियाने की ज़रुरत ही नहीं समझी, और समझी भी तो बड़े ही केजुयल वे में - ये एक अपवाद भी जुड़ा है उस विशिष्ट पोस्ट के साथ, खैर अपने को तो छंद साहित्य की सेवा जारी रखनी ही है]

मई से जुलाई तक का समय कहाँ निकल गया पता ही नहीं चला| घनाक्षरी छन्द आधारित आयोजन में जिन लोगों ने चार चाँद लगाये - आगे बढ़ने से पहले, आइये मिल जुल कर उन सब का [प्रस्तुति क्रम के मुताबिक] अभिनन्दन करते हैं:-

१. श्री सुरेन्द्र सिंह झंझट 
२. श्री महेंद्र वर्मा
३. श्री योगराज प्रभाकर 
४. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार'
५. श्रीमती आशा सक्सेना 
६. श्रीमती अजित गुप्ता 
७. श्री सुशील जोशी 
८. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
९. श्री धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'
१०. श्री राणा प्रताप सिंह 
११. श्री ब्रजेश त्रिपाठी 
१२. श्री शेखर चतुर्वेदी 
१३. श्री अम्बरीश श्रीवास्तव 
१४. श्री वीनस केशरी 
१५. श्री तिलक राज कपूर 
१६. श्री रविकांत पाण्डेय 
१७. श्री रविकर 
१८. श्री शेष धर तिवारी
और 
१९. ये खाक़सार नवीन सी. चतुर्वेदी

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि मैं समस्या पूर्ति के सभी आयोजनों से दूर रहता हूँ [प्रस्तुति विषयक], परन्तु समापन पोस्ट में गुजराती और मराठी के कारण मैंने अपना ये उसूल तोड़ा| आइये अब पढ़ते हैं उन कवियों के नाम जिन्होंने चुनौती पूर्ण विशेष पंक्ति पर प्रस्तुतियां दीं:- 

१. श्री राजेन्द्र 'स्वर्णकार' 
२. श्री आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
३. श्री रविकांत पाण्डेय 

इस आयोजन में जिन भाषाओं / बोलियों पर छन्द प्रस्तुत हुए उन के नाम :-

१. प्रचलित हिंदी
२. भोजपुरी 
३. ब्रजभाषा 
४. अवधी [प्रताप गढ़]
५. राजस्थानी [बीकानेर]
६. छत्तीसगढ़ी [रायपुरिहा]
७. हिंदी+उर्दू [पंजाब आंचलिक]
८. पंजाब 
९. पंजाबी [पटियाला]
१०. हरियाणवी 
११. सराइकी 
१२. हिमाचली 
१३. अवधी [वाचाल]
१४. बुन्देली 
१५. छत्तीसगढ़ी [जबलपुर]
१६. निमाड़ी 
१७. मालवी 
१८. राजस्थानी [जयपुर]
१९. हिंदी + उर्दू [मध्य भारत आंचलिक]
२०. भोजपुरी [गोरखपुर]
२१. अवधी [नैमिष]
२२. गुजराती
२३. मराठी 

यदि किसी का उल्लेख होने से रह गया हो तो हमें बताने की कृपा करें, हम क्षमा प्रार्थना सहित अगली पोस्ट में इसे अवश्य कवर करेंगे| तो ये तो थी पिछले आयोजन सम्बंधित बातें| अब बतियाते हैं अगले आयोजन के बारे में|

जैसा कि आप सभी को मालुम है कि अगला आयोजन हरिगीतिका छन्द पर होने जा रहा है| हर बार की भाँति इस बार भी हम सब से पहले इस छन्द पर बतियाते हैं| मंच कुछ उदाहरण दे रहा है, आप सभी भी अपनी अपनी जानकारियाँ [सिर्फ हरिगीतिका सम्बंधित] यहाँ सभी के साथ साझा करने की कृपा करें| इस परिचर्चा के बाद समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी|


हरिगीतिका छन्द के बारे में 
  • हरिगीतिका छन्द एक मात्रिक सम छन्द होता है 
  • ये छन्द कुल चार चरणों वाला छन्द होता है
  • प्रत्येक दो पंक्तियों में तुकांत समान होना चाहिए, वैसे चारों पंक्तियाँ भी समान हो सकती हैं|
  • प्रत्येक चरण में १६+१२=२८ मात्रा 
  • १६ वीं मात्र पर यति [बोलते हुए रुकने का क्रम]
  • प्रत्येक चरण के अंत में लघु गुरु अनिवार्य 
  • इस छन्द में हर्फ़ /अक्षर / वर्ण गिराना स्वीकार्य नहीं 
  • इस छंद की लय कुछ इस तरह से होती है :- 
                   ला - ला - ल - ला         ला - ला - ल - ला -  ला
                   ला - ल - ला        ला - ला - ल - ला


                   श्री - रा - म - चं        द्र  कृ  - पा - लु - भज      -  मन
                   हर - ण - भव       भय - दा - रु - णं

[ऊपर की पंक्ति में 'चंद्र' का 'द्र' और 'कृपालु' का 'कृ' संयुक्त अक्षर की तरह एक मात्रिक गिने गए हैं]               

अब एक उदाहरण तुलसी कृत रामायण से :-

श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारुणं।
नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं ।।
कंदर्प अगणित अमित छवि नव-नील नीरद सुन्दरं ।
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि  जनकसुता वरं।।
[यह स्तुति यू ट्यूब पर भी उपलब्ध है]

मात्रा गणना :-

श्री राम चन्द्र कृपालु भज मन 
२ २१ २१ १२१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति  

हरण भव भय दारुणं 
१११ ११ ११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

नव कंज लोचन कंज मुख कर 
११ २१ २११ २१ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

कंज पद कंजारुणं
२१ ११ २२१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

कंदर्प अगणित अमित छवि नव 
२२१ ११११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

नील नीरद सुन्दरं
२१ २११ २१२ = १२ मात्रा, अंत में लघु गुरु 

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि 
११ २१ २११ १११ ११ ११ = १६ मात्रा और यति 

नौमि जनकसुता वरं
२१ ११११२ १२ = १२ मात्र, अंत में लघु गुरु 

हमारे कुछ साथियों को शंका थी कि ये तो संस्कृत या बहुत ही शुद्ध हिन्दी वाला छन्द है| ख़ास कर उन मित्रों के लिए दो उदाहरण राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी वाले:-

वो वस्त्र कितने सूक्ष्म थे, कर लो कई जिनकी तहें।
शहजादियों के अंग फिर भी झांकते जिनसे रहें ।।
थी वह कला या क्या कि कैसी सूक्ष्म थी अनमोल थी ।
सौ हाथ लम्बे सूत की बस आध रत्ती तोल थी ।।
[भारत भारती से]




अभिमन्यु-धन के निधन से, कारण हुआ जो मूल है।
इस से हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है ।।
उस खल जयद्रथ को जगत में, मृत्यु ही अब सार है ।
उन्मुक्त बस उस के लिए रौ'र'व नरक का द्वार है ।।

[जयद्रथ वध से]
[यहाँ 'जयद्रथ' को संधि विच्छेद का प्रयोग तथा उच्चारण कला का इस्तेमाल करते हुए यूँ बोला जाएगा 'जयद्द्रथ'। पुराणों के अनुसार नरकों के विभिन्न प्रकारों में 'रौरव [रौ र व] नरक' बहुत ही भयानक नरक होता है]
 
तो ये थे तीन उदाहरण| पहले की मात्रा गणना के अनुसार बाकी दो की मात्रा गणना सहज ही की जा सकती है| फिर भी किसी नवागंतुक को कठिनाई आ रही हो तो मंच को सूचित करने की कृपा करें| हर संभव सहायता यहाँ सभी के लिए सहज ही उपलब्ध है| नो गुरु चेला - ओनली साहित्य मेला| वैसे ठाले बैठे पर भी इस छंद के कुछ  उदाहरण देखे जा सकते हैं:- 



श्री गणेश वंदना हरिगीतिका छन्द में


कुछ परामर्श भी चाहिए आप लोगों से

१. क्या 'विशेष पंक्ति' वाली घोषणा को जारी रखा जाए ?
२. क्या समस्या पूर्ति के लिए एक से अधिक विकल्प दिए जाएँ [पंक्ति/शब्द] ?
३. क्या एक व्यक्ति के द्वारा भेजे जाने वाले छंदों की संख्या निश्चित की जाए ?
४. क्या अन्य भाषाओं / बोलियों वाला प्रयोग जारी रखा जाए ?
५. और यदि [४] पर हाँ है, तो क्या इसे सम्बंधित कवि की उसी पोस्ट के साथ ही जोड़ दिया जाए - या फिर पिछले आयोजन की तरह समापन पोस्ट में लिया जाए ?

अपने-अपने सुविचारों को रखते हुए आप सभी इस परिचर्चा को आगे बढायें, उस के बाद फिर हर बार की तरह समस्या पूर्ति की पंक्ति की घोषणा की जायेगी| अगली पोस्ट में कुछ औडियो लिंक्स भी दिये जाएँगे|




जय माँ शारदे!

नई पुरानी पोस्ट्स ढूँढें यहाँ पर