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शनिवार, 19 मार्च 2011

दूसरी समस्या पूर्ति - दोहा - शेषधर तिवारी, राकेश तिवारी [१३-१४]


सभी साहित्य रसिकों का पुन:सादर अभिवादन और धूल [रंग वाली होली] की शुभकामनाएँ

इस बार हम एक नहीं दो दो तिवारी बन्धुओं के दोहे पढ़ते हैं|


SheshDhar Tiwari

जली होलिका प्रे की, भस्म हुए संस्कार|
नफरत के रंगों रँगा, होली का त्यौहार||

मर्यादा सूली चढी, स्वार्थ सिद्धि ही धर्म|
होली में स्वाहा हुए, दया प्रीति सत्कर्म||

रहे कभी
संयुक्त अब, एकल हैं परिवार|
होली में भी अब कहाँ, जुड़ते हैं घर चार||

तन रंगे क्या होत है, मन रंगे तो जान|
राधा के कानन पड़े, बस मुरली की तान||

गालों पे लाली चढी, होठ गुलाबी होत|
कान्हा तुमने कौन विधि, रंग दियो है पोत||

जदुराई के अंग लगि, राधा सिमटत जात|
ज्यूँ लजात है हाँथ लगि, छुई मुई के पात||

मन मलीन, काया कलुष,
वाणी विष, उर घात|
इनसे बच कर जो मिले, वह जीवन सौगात||

इन्द्र धनुष सा ही रहे, जीवन ये सतरंग|
बिगड़े तो फिर फिर बने, मित्र रहें जो संग||

कान्हा के जब भी बढ़ें, हस्त कलश की ओर|
इत उत देखे राधिका, चले कोऊ जोर||

कान्हा गैया थन पकरि, जो मुह दीनी धार|
राधा अंखियाँ मीचती, करती मातु पुकार|१०|

जसुमति देखें ओट ते, लीला हरि की जान|
नैनन को शीतल रन, कानन कीन्ही दान|११|

राधा के तन जो पडी, धवल प्रीति की धार|
सभी मनाते कह इसे, होली का
त्यौहा|१२|
:- शेषधर तिवारी

विविध रंगों से रँगे इंद्रधनुषी दोहे हैं ये| सामजिक सरोकार, गाय के तन से सीधा दूध का पीना, कलश वाला दोहावाह तिवारी जी वाह| आज के दिन को और भी रंगीन कर दिया आपके दोहों ने| ख़ासकर संयुक्त और एकलपरिवार वाले दोहे ने तो विशेष रूप से प्रभावित किया है|

Rakesh Tewari

ऋतु आई ऐसी भली, हवा बसै रसधार|
शीत ऋतू चलती भई, आइ वसंत बहार|१|

बगियन झूलै मंजरी, फूल चढाए चाप|
विजयशाल ठनकन लगे, मदन चलें चुपचाप|२|

ठंडाई माथे चढी, चढ़े नैन रतनार|
विचरें दूजे लोक में, बिसरा यह संसार|३|

हरसिँगार-टेसू मिला, रंग किये तैयार|
उनमें मिले गुलाब जल, होली का त्यौहार|४|

लाल गुलाबी बैंगनी, उडै अबीर गुलाल|
भीगे हैं सब रंग में, अधर हो गए लाल|५|

बहुतै दिन रूठे रहे, पाले मन में रार|
रंग-राग में धुल गई, सारी अबकी बार|६|

तन-मन तर भए रंग में, उस होली में यार|
परब बरस गाढे परत, पहले से चटकार|७|

होली में फिर दिख गई, तेरी छवि इक बार|
अंतर्मन झंकृत हुआ, झन झन करते तार|८|

सारा आलम रंगमय, छोट-बूढ़ नर-नार|
जग से न्यारा एक है, होली का त्यौहार|९|

अजीब इत्तेफ़ाक है इस समस्या पूर्ति के पहले चक्र में पधारी निर्मला जी ने जीवन में पहली बार दोहे लिखे हैं| बकौल पंकज सुबीर - उन के लिए भी यह पहला ही मौका है| और अब राकेश भाई के अनुसार वो भी पहली बार ही दोहे लिख रहे हैं| इस से बड़ी खुशी की बात और क्या होगी| आप लोगों का छन्दों के प्रति रुझान देखते हुए लगता है कि आयोजन सही दिशा में जा रहा है| राकेश भाई आप ने वाकई गजब के दोहे लिखे हैं| बहुत बहुत बधाई|

4 टिप्‍पणियां:

  1. होली की हार्दिक बधाई आपको भी और दोनों दोहाकारों को भी.

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  2. बहुत ही शानदार दोहे लिखे हैं दोनों कवियों ने। बहुत बहुत बधाई और होली की शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  3. होली में चेहरा हुआ, काला, पीला-लाल।
    श्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१।

    महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल।
    होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२।

    हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल।
    होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३।

    कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल।
    टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४।

    --

    रंगों के पर्व होली की सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  4. दोनो दोहाकारों का स्वागत है, बहुत सुन्दर रचनायें। होली की शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

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